जलवायु परिवर्तन पर कोर्ट सख्त, कार्बन उत्सर्जन से निपटने के लिए ऊर्जा मंत्रालय को दिए निर्देश

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिजली उत्पादन से होने वाले कार्बन उत्सर्जन की समस्या से निपटने के लिए सभी संबंधित पक्षों को एक साझा मंच पर आना होगा। कोर्ट ने ऊर्जा मंत्रालय को निर्देश दिया है कि वह केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) और केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) के साथ संयुक्त बैठक बुलाकर इस दिशा में ठोस कार्ययोजना तैयार करे। कोर्ट का मानना है कि नीति निर्धारकों को जमीनी वास्तविकताओं से जोड़े बिना उत्सर्जन की चुनौती को दूर नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर की पीठ ने 22 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि बिजली उत्पादन से उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए यह आवश्यक है कि सभी स्टेकहोल्डर एक ही मंच पर आकर योजना बनाएं और उसे सुसंगत रूप से लागू करें। कोर्ट ने इस मुद्दे पर नीति बनाने वालों और क्रियान्वयन एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल की आवश्यकता भी जताई।
एनजीटी के आदेश से जुड़ा था मामला
यह निर्देश उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया जो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के एक आदेश से संबंधित है। एनजीटी ने पर्यावरण मंजूरी देने से पहले जलवायु परिवर्तन संबंधी प्रभावों का मूल्यांकन करने की मांग को लेकर आदेश पारित किया था। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीईए और सीईआरसी को मामले में पक्षकार बनाते हुए नोटिस जारी किया और ऊर्जा मंत्रालय को चार सप्ताह में योजना पर आधारित एक संयुक्त हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
जलवायु परिवर्तन को बताया वैश्विक संकट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 21 फरवरी 2025 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन अब एक वैश्विक संकट बन चुका है, जो केवल पर्यावरणीय क्षरण तक सीमित नहीं है। इसका असर तापमान वृद्धि, अनियमित मौसम, बाढ़, सूखा और लू जैसे चरम मौसमी घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है। कोर्ट ने कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए समन्वित प्रयास ज़रूरी हैं।